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मैक्स वेबर और भारतीय समाज |
मैक्स वेबर
जर्मनी के एक प्रख्यात समाजशास्त्री और चिंतक हुए हैं | समाज शास्त्र और लोक
प्रशासन में उन्होंने कई अवधारणाएं दी हैं | लोक प्रशासन के क्षेत्र में नौकरशाही
की कार्य पद्धति विकसित और विकासशील देशों में किस प्रकार अलग अलग होती है, इस
विषय में उन्होंने कई रोचक तथ्य दिए | किसी समाज के धार्मिक विचार उस समाज की
आर्थिक उन्नति पर कैसे प्रभाव डालते हैं इस तथ्य का भी उन्होंने विश्लेषण किया है
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मैक्स वेबर ने
1905 में अर्थशास्त्र और पूंजीवाद को लेकर
अपना एक अध्ययन किया जिसे उन्होंने “द प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म”
के नाम से प्रकाशित किया | इस अध्ययन में मैक्स वेबर ने विश्व के 6 महान धर्मों को चुना जिनमें कन्फ्यूशियस,
हिंदू, बौद्ध, ईसाई, इस्लाम और यहूदी धर्म शामिल किए | वेबर ने इनमें से प्रत्येक
धर्म के आर्थिक विचारों का विश्लेषण किया और फिर इन विचारों और उस धर्म विशेष को
मानने वाले लोगों के आर्थिक और सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया |
मैक्स वेबर
ने अपने अध्ययन में यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि पूंजीवाद का विकास प्रारंभिक
अवस्था में केवल उन्हीं देशों में हुआ जिन देशों में समाज प्रोटेस्टेंट धर्म को
मानता था | बेवर के अनुसार प्रोटेस्टेंट धर्म के आर्थिक विचार में वे सभी बातें सम्मिलित हैं जो इस प्रकार की
आर्थिक व्यवस्था को संभव बनाती हैं तथा उन्हें विस्तार देती हैं | वेबर के अनुसार
पूंजीवाद का सर्वोत्तम विकास इंग्लैंड, अमेरिका और हॉलैंड आदि उन देशों में हुआ है
जहां के लोग प्रोटेस्टेंट धर्म के अनुयायी थे | इसके विपरीत इटली, स्पेन आदि देशों
के लोग कैथोलिक धर्म के अनुयायी होने के कारण पूंजीवाद को अधिक विकसित नहीं कर पाए
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मैक्स वेबर
ने कन्फ्यूशियस धर्म, बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और यहूदी धर्म का विश्लेषण किया और
यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि इन सभी धर्मों के आर्थिक विचारों के अनुरूप ही
समाज का आर्थिक और सामाजिक संगठन निश्चित हुआ है | उनके अनुसार हिंदू, बौद्ध और
कन्फ्यूशियस धर्म में ऐसे आर्थिक विचार विकसित हुए हैं जो पूंजीवाद के विकास में बाधक थे
जैसे हिंदू धर्म में भाग्यवाद और पारलौकिक
संयम पर बल दिया गया है | चीन के कन्फ्यूशियस में समरसता, परंपरावाद और पारिवारिक
दायित्वों के निर्वाह को विशेष महत्व दिया गया है | बौद्ध धर्म में भी धन के
संग्रह की प्रवृत्ति की निंदा की गई है |
मैक्स वेबर
ने अपने अध्ययन में जो सत्य स्थापित करने का प्रयास किया वह आंशिक रूप से सही हो
सकता है लेकिन वे कुछ सवालों के जवाब देने में असमर्थ रहे हैं | उदाहरण के लिए
जापानी समाज के लोग और यहूदी आबादी के आर्थिक विकास का क्या कारण रहा ? जबकि उनके
पास न तो पर्याप्त संसाधन उपलब्ध थे और न ही वे प्रोटेस्टेंट धर्म का पालन करते थे
|
अगर हम भारत
के संदर्भ में बात करें तो यहां की ज्यादातर आबादी हिंदू धर्म की
अनुयायी है
जिसमें आवश्यकता से अधिक वस्तुओं के संग्रह को सामाजिक और धार्मिक तौर पर भी सही
नहीं माना जाता | भारत के अग्रवाल, मारवाड़ी, सिंधी, जैन आदि समुदाय भी आर्थिक रूप
से समृद्ध हुए हैं | इसका कारण स्पष्ट तौर पर मैक्स वेबर के अध्ययन के विपरीत जाता
है |
भारत की
अर्थव्यवस्था को आजादी से पहले औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों द्वारा बर्बाद करने की
कोशिश की गई | आजादी के बाद यह साम्यवादी और पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं का एक
मिश्रित रूप रहा है | भारत में पूंजीवाद का विकास मुख्य रूप से 1991 के आर्थिक उदारवाद के बाद ही देखने को
मिलता है | विश्व के हर देश की अपनी संस्कृति और
सभ्यता होती है | मैक्स वेबर ने भी अपने अध्ययन में इन्हीं बातों को उजागर करने का
कार्य किया है | लेकिन वे भारतीय समाज को गहन रूप से समझने में असमर्थ रहे हैं | पूंजीवाद
का विकास भी हर देश में वहां की परिस्थितियों और समाज के अनुसार हुआ है | चीन में
साम्यवादी सरकार के नियंत्रण में पूंजीवाद फल फूल रहा है जो कि वैचारिक रूप से एक दुसरे
के विपरीत है |
भारतीय समाज
में पूंजीवाद का विकास पश्चिम में की अपेक्षा एक नए परिपेक्ष में हुआ है | भारतीय समाज की परिवार व्यवस्था यहां की
आर्थिक गतिविधियों का केंद्र है | भारतीय समाज में एक अन्य विशेषता परिवार में बचत
की अवधारणा है जिससे यहां का समाज पश्चिम के देशों की आबादी के विपरीत अपनी सरकारों पर कम आश्रित है |
पश्चिम के
देशों में आर्थिक समृद्धि तो बढ़ी है लेकिन वहां की अर्थव्यवस्था में संकट को झेलने
की ताकत बहुत कम है | उदाहरण के तौर पर सन 2008 का अमेरिका का “सबप्राइम-संकट” लिया जा
सकता है जिसने वहां की आर्थिक व्यवस्था की जड़ें हिला दी थी | भारत की
अर्थव्यवस्था इस मामले में सुदृढ़ है क्योंकि यहां उत्पादन और खपत का आपसी
सामंजस्य है |
भारतीय
आर्थिक गतिविधियों को और अधिक गहराई में समझने के लिए भारतीय समाज के सभी अवयवों
को भी गहराई से समझना होगा | इसमें जाति प्रथा भी एक है | क्या कारण है कि कुछ
जातियां आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध हैं जबकि उनके पास पारंपरिक तौर पर इतने संसाधन
नहीं थे | जबकि कुछ जातियां जिनके पास संसाधन थे लेकिन वे आर्थिक रूप से वर्तमान
व्यवस्था में अधिक उन्नति नहीं कर पाए | उनके क्या कारण रहे होंगे ?
मैक्स वेबर
ने समाज, संस्कृति और धार्मिक विचारों का अर्थव्यवस्था पर पडने वाला संबंध उजागर
करने का प्रयास किया है | लेकिन भारतीय संदर्भ में इसमें और अधिक अध्ययन की
आवश्यकता है | जिससे इसे समग्र रूप से समझा जा सके | हमें यह भी ध्यान रखना होगा
कि समाज परिवर्तनशील है और कोई भी सत्य आखरी सत्य नहीं होता |
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