अगर हम मनुष्य के इतिहास का अध्ययन करें तो यह मालूम पड़ेगा कि सभ्यता का विकास नदियों के किनारे हुआ है | चाहे वो सिन्धु घाटी की सभ्यता हो , नील नदी की या गंगा यमुना के मैदान की सभ्यता | लेकिन हमारी वर्तमान पीढ़ी इन नदियों के रूप में हमारे पूर्वजों की अमानत की संभाल नहीं कर पा रही है | वेदों और पुराणों में उल्लेखित सरस्वती, घग्गर और मारकंडा जैसी नदियां या तो  विलुप्त हो चुकी हैं  या सिर्फ सूखे नाले बन कर रह गई है | जिनकी प्यास मानसून के दिनों में कभी कभी बुझती है | घग्घर नदी एक दूषित नाले में परिवर्तित हो चुकी है | हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी रिपोर्ट के आधार पर बताया गया है कि घग्घर नदी के किनारे भूमिगत जल की स्थिति बहुत खराब है और उसके किनारों के 500 मीटर के दायरे में भूमिगत जल पीने लायक नहीं है | यह समस्या घग्गर नदी में औद्योगिक इकाईयों द्वारा दूषित पानी के छोड़े जाने से उत्पन्न हुई है |


देश भर में नदियों और जलाशयों में पानी की उपलब्धता की स्थिति गंभीर बनी हुई है | महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बुंदेलखंड आदि इलाकों से सुखे के कारण पलायन और पीने के पानी की उपलब्धता की स्थिति गंभीर स्तर तक जा चुकी है | महाराष्ट्र के तो कुछ इलाकों में स्थिति इतनी गंभीर है कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा 30 करोड़ रूपए में कृत्रिम बारिश करवाने की कोशिश की जा रही है |


भारत में बरसात में कमी से सूखे की स्थिति और पानी की उपलब्धता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है | केंद्रीय जल आयोग ने 10 मई 2019 को एक एडवाइजरी जारी की है | जिसके अनुसार तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में पानी के जलाशयों में पानी की उपलब्धता निम्नतम स्तर तक पहुंच गई है | इस प्रकार सूखे की एडवाइजरी तक जारी की जाती है | जब जलाशयों में पानी की उपलब्धता सामान्य की अपेक्षा 20% कम हो जाती है और यह पिछले 10 सालों के औसत के आधार पर तय किया जाता है | नीति आयोग की भी एक रिपोर्ट पिछले दिनों आई है जिसमें कहा गया है कि 2020 तक भारत के 100 मिलियन लोग भूमिगत जल की कमी के कारण प्रभावित होंगे और दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद जैसे शहर जिसमे शामिल है और भारत की 40% जनसंख्या के लिए 2030 तक पीने योग्य स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाना मुश्किल हो जाएगा |





इन सब चिंताजनक स्थितियों को देखते हुए हमें पानी की कमी और सूखे को लेकर गंभीरता से सोचने और उपाय करने की जरूरत है | अब समय गया है हम मूकदर्शक बनकर ना बैठे हैं अन्यथा आने वाली पीढ़ियों और वर्तमान पीढ़ी के जीवन पर भी संकट सकता है और एक विकसित भारत की तस्वीर धुंधली पड़ सकती है | भारत के पास विश्व की कुल जमीन का करीब 2.5% क्षेत्रफल है और दुनिया के जल संसाधनों का 4% भारत के पास है लेकिन भारत की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का 18% है इसलिए भारत के संसाधनों पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है |


भारत की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है और हमारी लगभग तीन चौथाई कृषि बरसात पर निर्भर है |  उत्तर भारत के राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हरित क्रांति के नाम पर धान की फसल पर विशेष जोर दिया गया | जिसमें पानी की आवश्यकता बाकी की फसलों से बहुत ज्यादा होती है जल के अंधाधुंध दोहन से इन राज्यों का भूमिगत जलस्तर खतरनाक सीमा तक गिर गया है | एक रिसर्च के अनुसार 1 किलोग्राम चावल उत्पादन के लिए लगभग 3000 से 5000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है |  अगर इस पानी की ही कीमत का अनुमान लगाया जाए तो यह बहुत महंगा सौदा साबित हो रहा है


उतरी भारत के राज्य में हरियाणा की सरकार ने जल संरक्षण हेतुजल ही जीवन योजना देश में पहली बार लागू की है | जिसके प्रथम चरण में प्रदेश के आठ खंडों में जिनमें अंबाला थानेसर, गन्नौर, रादौर, साहा, पुंडरी, असंध और नरवाना शामिल है में फसल विविधीकरण हेतु मक्का और अरहर की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए एक योजना का शुभारंभ 27 मई 2019 से किया गया है | जिसमें किसानों को धान के बदले मक्का और अरहर जैसी फसलें उगाने के लिए प्रति एकड़ ₹2000 की वित्तीय सहायता देने का प्रावधान किया गया है | इसके साथ-साथ किसानों को मक्का और अरहर की उत्तम किस्म का बीज भी निशुल्क उपलब्ध करवाया जाएगा जिसकी कीमत प्रति एकड़ 1200 से ₹2000 है | इस योजना में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का प्रीमियम भी हरियाणा सरकार द्वारा ही वहन किया जाएगा और इन फसलों की खरीद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी एजेंसियों द्वारा की जाएगी | इस प्रकार की योजना से हमारी भावी पीढ़ियों के लिए पीने योग्य जल उपलब्ध रहे, यह बात सुनिश्चित कर सकते हैं और हमारे राजनीतिक दलों को भी यह चाहिए कि ऐसे मुद्दों पर राजनीति से ऊपर होकर सोचना पड़ेगा |


एक दूसरी समस्या किसानों द्वारा परंपरागत सिंचाई के तरीके को बदलने से भी हल हो सकती है वर्तमान में किसान खेतों में फ्लड सिचाई प्रणाली से करते हैं जिसमें 90% पानी व्यर्थ चला जाता है | हमें सिंचाई की तकनीकों को भी बदलना होगा जिसमें टपका विधि और फव्वारा विधि अपनाने के लिए सरकारी स्तर पर भी प्रयास  किए जाने की आवश्यकता है | क्योंकि एक आम किसान की आर्थिक स्थिति इस प्रकार की महंगी सिंचाई तकनीक अपनाने की नहीं है | हरियाणा में  ही सिंचाई हेतु 45000 बिजली के कनेक्शन पेंडिंग है | अब सरकार द्वारा निर्णय लिया गया है कि अब उन्ही किसानों को बिजली कनेक्शन जारी किए जाएंगे जो फ्लड सिंचाई प्रणाली की बजाय माइक्रो इरिगेशन सिस्टम को अपनाएंगे |


भारत के कई राज्यों के बीच नदी जल को लेकर निरंतर संघर्ष की स्थिति बनी रहती है | दक्षिण भारत का कावेरी जल विवाद वर्षों तक उच्चतम न्यायालय और कावेरी जल प्राधिकरण में अटका रहा | उत्तर भारत में भी सतलुज यमुना लिंक नहर का मामला जिसमें पंजाब द्वारा हरियाणा के हिस्से का पानी छोड़ा जाना है, यह मामला भी वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है अगर इसी प्रकार की स्थितियां बनी रहे तो यह मामले और भी पेचीदा हो सकते हैं |


हरियाणा प्रदेश में 20 से 25 साल पहले जमीन के अंदर 9504 मिलीयन क्यूबिक पानी था | जिसमें से 7081  मिलीयन क्यूबिक पानी की निकासी की जा चुकी है | हरियाणा में करीब 8 लाख  ट्यूबवेल है और 36.25 लाख हेक्टेयर एरिया में खेती होती है | अभी तक कुल मिलाकर जमीन के नीचे से 74 फ़ीसदी पानी की निकासी हो चुकी है और अगर निकासी का यही हाल रहा तो जमीन के नीचे पानी बहुत कम रह जाएगा जिस से आने वाली पीढ़ियों के जीवन पर संकट पैदा हो जाएगा | हरियाणा की बात करें तो प्रदेश में 21 डार्क जोन घोषित हो चुके हैं तथा 101 ऐसे स्थान हैं जहां पेयजल की गुणवत्ता ठीक नहीं है |






 पहले उत्तर भारत में के गांव में अमूमन एक से ज्यादा तालाब होते थे जो भूमिगत जल को एक स्तर पर बनाए रखने का काम करते थे लेकिन समय के साथ-साथ गांव की बढ़ती आबादी के कारण तालाबों की रखरखाव में कमी आई है और उस पर अवैध कब्जे हो चुके हैं सरकारों ने कुछ तालाबों कोफाइव पोंड सिस्टम में बदलने का कार्य शुरू किया है लेकिन इस दिशा में बहुत कार्य किया जाना बाकी है |


 जल संचय की दिशा में कई सामाजिक संस्थाएं और व्यक्ति कार्य कर रहे हैं | उन सब का भी योगदान इस समस्या के निवारण हेतु लिया जा सकता है | हम सब ने सामाजिक स्तर पर तालाबों को संवारने की एक मुहिम चलानी होगी | पर्यावरण और जल संचय के क्षेत्र में काम करने वाले श्री राजेंदर सिंह, बाबा सींचेवाल आदि व्यक्तियों और संस्थाओं के साथ-साथ समाज और सरकारों के सामुहिक प्रयासों से इस विकट स्थिति को संभाला जा सकता है |